मंजिल की ओर
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हांथो में तेरे हाँथ को लेकर
देखे थे जो हमने सपने
उनको अब कैसे बिसराउ
प्रिये तुम्हे कैसे भूल जाऊं ?
तन में ,मन में रोम – रोम में
हो दिल के हर एक धड़कन में
बिन तेरे कैसे रह पाऊं
प्रिये तुम्हे कैसे भूल जाऊं ?
घन तिमिर में खो गए कहाँ हो
कुछ तो बोलो प्रिये कहाँ हो
रोते दिल को क्या समझाऊं
प्रिये तुम्हे कैसे भूल जाऊं ?
आँखों से बहती अश्रु धाराए
पूछती हैं ये तुम क्यों न आये
बोलो तुम ही क्या बतलाऊं
प्रिये तुम्हे कैसे भूल जाऊं ?
मन के मीत तू लौट के आ जा
इन नयनो की प्यास बुझा जा
तनहा दिल अब जी ना पाऊं
प्रिये तुम्हे कैसे भूल जाऊं ?
आशुतोष अम्बर
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